पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४०८

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अटमाऽध्याय ४०५ . साक्षी हो) उसमे भी जो देवे और सुने उस को पूछने पर जैसा देखे सुने वैसा ही कहे ॥७॥ .. एका लुब्धस्तु साक्षीस्याद्वयः शुन्योपि न स्त्रियः । स्त्रीयुद्धेरऽस्थिरत्वावु दोपैश्वानेऽपि ये वृताः ॥७७|| स्वभावेनैव यज्ञ युस्तद् अाय व्यावहारिकम् । अतो यदन्यहिन युधर्मार्थ बदमार्थझम् ।।७८|| एक ही साक्षी लोभाटि रहित हो तो पर्याप्त है परन्तु स्त्रियां बहुत और पवित्र भी होवें को भी नहीं, क्योंकि स्त्री की बुद्धि स्थिर नहीं होती और दो से युक्त अन्य लोगों को भी साक्षी न करे ७वा सानी नपार से (अथान् भवादिसे रहित होकर) जो कहे वह व्यवहार में निर्णय में प्राह्म है और इससे विरीत (मा लाभ आदि ने) जो विद्वबाट कह सो ब्यवहार के निर्णमा निरर्थक है | समान्तः साक्षिणः प्रामानार्थप्रत्यर्थिमनिधौ । प्रावियाकोऽनुयुञ्जीत विविनानेन सान्वयन् ॥६॥ यद् द्वयोरनयोर्वत्थकार्यस्मिंश्चेष्टितं मिथः । तद् त सर्व सत्येन युष्माकं ह्यत्र साक्षिता ||८|| सभा के बीच पार हुये मातियो से अर्थी और प्रत्ययों के सामने प्राइ विद्याक (वकील आदि) धैर्य देकर आगे कहे प्रकार से पूछे कि ॥७॥ इन दोना (मुहई मुहबाइलह) ने आपस में इस काम में जो कुछ किया हो उसको तुम जो कुछ जानते हो सो सर सचाई से कहो क्योंकि तुम्हारी इसमें गवाही है ।।८011 सत्यं साक्ष्ये वन्स.ची लोकानाप्नोति पुष्कलान् ।