पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४११

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मनुस्मृति भाषानुवाद उदङ्मुखान्याङ्मुखान्या पूर्वाह्नवै शुचि शुचीन् ।७। ब्रू हीति ब्राझणं पृच्छत्सत्य व हीतिपार्थिवम् । गोचीजकाञ्चनश्यं शूद्रं सर्वैस्तु पातकः ||८|| देवता और ब्राह्मण के समीप में पवित्र द्विजातियों को पूर्व सुख वा उत्तर मुख कराके आप शुद्ध स्वस्थचित्त हुया अभियोक्ता सवेरेके समय सच सच वृत्तान्त पूछे १८५|| 'कहो ऐसा प्राह्मण से पूछे । और "सच बोला" ऐसा क्षत्रिय से पूछे और 'गाय, पोज, सुवर्ण के पुराने का पातक तुम को होगा ओ कुंठ वालोगे तो ऐसा कह कर वैश्य से पूछे । 'सब पातक तुम को लेंगेंगे जो मठ बोलोगेतो, ऐसा कह कर शूद्र से पूछे ।।८।। ब्रह्मनायेस्मृतालोका ये च स्त्रीबालघातिनः । मित्रहः कृतघ्नस्य ते ते स्पुत्रवतो मृषा |८६ । जन्मप्रभृति यत्किञ्चित्पुण्यं मद्र स्त्रया कृतम् । तत्वे सब शुनोगच्छेद्यदि न यास्त्वमन्यथा ॥६०|| ब्राह्मण के मारने वाले और स्त्री घाती तथा बालघाती और मित्र द्रोही और कृतघ्न का जोर लोक प्राप्त होने कहे हैं वही भूठ बोलने वाले को हो ॥४९॥ हे भद्र तूने आयु मर जो कुछ पुण्य किया है, वह सब तेरा पुण्य कुत्ते पावें, जो तू इस विषय में अन्यथा कहे ॥१०॥ एकाहमस्मीत्यात्मानं या कल्याण मन्यसे । नित्य स्थितस्ते हुयेष पुण्यपापेक्षिता मुनिः ॥११॥ यमो नैवस्वतो देवा यस्तष हदि स्थितः।