पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अष्टमाऽध्याय (होने वाले पुत्रादि) के मारने के फल को पाता है और भूमि के लिये असत्य बोलने वाला सम्पूर्ण प्राणियो के हनन का फल पाता है इस लिये तू भूमि के लिये भी मूठ मत बोल । (९९वें से आगे नन्दन के टीके वाले पुस्तक में डेढ़ श्लोक यह अधिक प्रक्षिप्त [ पशुवत्वौद्धृतयोर्यच्चान्यत्पशुसम्वम् । गोवद्वत्सहिरण्येषु धान्यपुष्पफलेषु च । अश्ववत्स यानेपुखरोष्ट्रयतरादिपु] शहद और घृत के विषय में झूठी गवाही देने वाले को पशु विषयकसमानपातक लगता है और अन्यमी जो कुपिशुसे उत्पन्न (दुग्धादि) पदार्थ हैं, उन में भी । बछड़ों वा सुवर्ण के विषय में गौ के तुल्य धान्य पुष्प और फलों के विषय में भी । गधा इंट वतरादि सव सवारियों के विषय में मूठे गवाह को घोड़ेक विषय में कहे असत्य जनित पातक के तुल्य पातक लगता है )||९९।। अप्सु भूमिवदित्याहुः स्त्रीणां मागे च मैथुते ।। अब्जेषु चैव रत्नेषु सर्वेष्वश्ममयेषु च ।१००॥ (तालाब, पाबड़ी इत्यादि) जलाशय के विपमे और स्त्रियों के भोग मैथन मे और (मातिवादि) लेात्पन्न रत्नो के विषय में तथा हीरा आदि पत्थों के विषय मे ( बोलने का) भूमि के पातक समान (पातक) है। (१०० वें के आगे भी ५ पुस्तका में यह श्लोक अधिक मिलता है। (पशुवत् चौघृतवार्यानेषु च तथाऽश्ववत् । गोवद्रजतवस्त्रेषु धान्ये ब्राह्मणवद्विधिः ॥]