पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४१२ मनुस्मृति भापानुवार शहद और घृत मे पशु के तुल्य सवारियों में घोड़े के तुल्य. च दी और वस्त्रो मे गौ के तुल्य और धान्य के विषय में असत्य गवाही देने वाले को ब्राह्मण विषयक पाप के समान पार होता है ] ॥१०॥ एतान्दोपानश्वेच्य त्वं सर्वाननृतभापणे । यथाश्रुतं यथादृष्टं मब मेवाचसा वद ॥१०॥ गोरक्षकान्वाणिजिकांस्तथा कारुकुशीलवान् । प्रध्यान्वार्धपिकांश्चैव विधान शूद्रवदाचरेत् ।१०२॥ इन सरर बोजने में पानकों को समझ कर जैसा देखा और सुना है, वही मत्र शीत्र कह ॥१०॥ गौ रखाने बाने, बनिये लुहार , बढई आदि के काम वा रसाई करने वाले, गाने वनाने वाले, हलकारे की नौकरी करन वाले और व्याज से जीने वाले ब्राह्मणो से भी (राजा) शूर के समान प्रश्न करे। (१०२ वे से आगे भी एक पुस्तक में यह श्लोक अधिक है :- [येप्यतीताः स्वधर्मभ्यः परपिण्डापजीविनः । द्विजत्वमभिकाक्षन्ति तांश्च शूद्रानिवाचरेत् ॥] जो लोग अपने पूर्ण धर्मों को छोड़ कर पराई जीविका करने लगे हों और द्विज होने की इच्छा करे उन को राजा शूद्र के तुल्य सम्बोधन करे। इसी तात्पर्य का श्लोक एक अन्य पुस्तक मे इसी जगह मिलता है। यथा- [येऽप्यपेताः स्वकर्मभ्यः परकोपजीविनः । द्विजा धर्म विजानन्तस्तांश्च शूद्रपदाचरेत् ॥१०२। "तद्वदन्धर्मतोऽर्थेषु जाननप्यन्यथा नरः। .