मनुस्मृति भापानुवाद इन्धन और ब्राह्मण की रक्षा के लिये ( वृथा शपथ करने में पातक नहीं है।' (यह अपवाद भी अन्यायप्रवत्तक, असत्यपोपक तथा धर्म शास्त्रके सत्यसिद्धान्तका घाधक और 'ब्राह्मणाभ्युपपत्ती मानणस्य विपत्तौ ब्राहाणावपत्तौ ये तीनपाठ भी भिन्न प्रकार मिलने हैं)११२ सत्येन शापयेद्विग्न चत्रियं वाहनायुधै ।। गोबीजकाञ्चनैश्यं शूद्रं सर्वस्तु पातकैः ॥११३।। 'अग्निं वा हारयेदेनमण्मु चैनं निमज्जयेन् । पुत्रारम्य वाप्येन शिरांमि म्पर्शयेस्टयक् ॥११॥" ब्राह्मण को सत्य की शपथ (कमम) करा । क्षत्रिय को वाहन तथा आयुध (हथियार ) की वैश्य को गाप या पैल. चीन और सौनेकी और शूद्र को सम्पूर्ण पातको से [ शपथ (कसम) करावे] ॥११३३॥ "जलने अग्नि को (शत माक्षी) से उग्वारे और पानी में इस को हुवावे और पुत्र स्त्री के शिर पर अलग २ इस से हाथ घरावे ॥११४॥" "यमिद्धो न दहत्यग्निरापो नोन्मजयन्ति च । न चातिमृच्छति ति स जय शपथे शुचि. ॥११५|| वत्सस्य घमिशस्तस्य पुरा भ्रात्रा चवीप्रसा। नाग्निदाह रोमापि सत्येन जगत म्पृश. ॥११॥ जिस को जलाती आग नही जलाती और पानी जिस का नहीं डुबाने और जिस को पुत्रादि के वियोगजनित वढी पीडा जल्गे नही प्राप्त होती यह ( शुद्र) शपथ मे सच्चा जानना चाहिये ॥११५।। क्योकि पूर्व काल में वत्स अपि को छोटे भ्राता ने कहा कि (तू शूद्रा का लड़का है ब्राह्मण का नहीं, इस कहने से उस