पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४२१

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11 11 दण्ड देवे ४१८ मनुस्मृति भाषानुवाद इन लाभाडि में से किसी कारण सुरुदमे मे जो झूठी गवाही दे. उस के दण्ड विशेष क्रम ये आगे कहता हूँ ॥११९।। लाम से (मिथ्या गवाही देने वाले पर) हजार" पण [१५||4)] दण्ड हो और मोह से कहने वाले को 'प्रथम साहस ||)] दण्ड देवे और भय से कहने वाले को दो मध्यम साहस" [१५||)] दण्ड और मैत्री से नूर कहने वाले का 'प्रथम साहस का चतु- गुण .१५॥ "चिन्हित परिमार संशा यो १३१ १ १५.नक संत्रा प्रारमे कहे अनुमार जानिये ) ॥१२०॥ कामाद्दशगुणं पूर्व क्रोधात त्रिगुणं परम् । अज्ञानाद् द्वशतेपूर्णे पालिश्याच्चतमेवतु ॥१२॥ एतानाहु: कौटसाक्ष्ये प्रोक्तान्दण्डान् मनीषिभिः । .धर्मस्पान्यभिचारार्थमधर्मनियमाय च ॥१२२॥ कामनिमित्त (असत्य गवाही दले) प्रथम साहस दशगुण' [३९)] और क्रोध से ( झूठी गवाही दे तो) तिगुणा उत्तम साहस' [४६||)] और अज्ञान से (झूठी गवाही दे तो ) सौ पण [NI-)] दण्ड पावे ॥ (हमने पण को एक पैसा कल्पित करके ये रकम लिखी हैं परन्तु इसमे कुछ अन्तर है। आज कल का सिक्का उस में ठीक नहीं मिलता) ||१२|| सत्य- रूप धर्म के लोप न होने और असत्यरूपी अधर्म के दूर होने के लिये भूठे साक्षी को ये दण्ड विद्वानो ने कहे हैं ।।१२२।। कौटसाक्ष्यं तु कुर्वाणांस्त्रीन्वर्णान्धार्मिकोनपः । प्रवासयेद्दण्डयित्वा ब्रामणंतु विवासयेत् ॥१२३॥ .