पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४२२

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अष्टमाऽध्याय दशस्थानानि दण्डस मनुः सायमुवानी । त्रिपुवर्णेषु यानि स्युरक्षना ब्रामण बजे ॥१२४॥ धार्मिक राजा झूठी गवाही देने वाले तीनों वर्ण को दण्ड देकर देश से बाहर निकाल देवे और ब्राह्मण को (केवल) निकाल हे ।।१२३।। जो दण्ड के १० स्थान स्वायंभुव मनु ने कहे है, वे सत्रियादि तीन वर्षों की हैं। और ब्राह्मण को बिना चोटके (केवल) निकाल देवे ॥ (मनुरखचीन ० से संदेह नो स्पष्ट है कि यह अन्यकृत है )॥१२४ उपस्थमुदरं जिहा हस्तौ पादौ च पञ्चमम् । चक्षुर्नासा च की च धनं देहस्तथैव च ॥१२५॥ अनुवन्धं परिज्ञाय देशकालौ च तत्वतः । सारापराधौ चालोक्य दण्डं दण्ड्येपु पातये॥१२६। लिन उदर जीभ हाथ पाचवें पर और आंख, नाक, कान धन और देह (ये १० दण्ड के स्थान है। ॥१२५॥ प्रकरण (सिलसिले) को समझ कर देशकाल को ठीक २ जानकर और (धन शरीरादि) सामर्थ्य तथाअपराधको देखकर दण्डक योग्यों को दण्ड देवे।१२। अधर्मदण्डनं लोके यशोग्न कीर्तिनाशनम् । अस्वयं च परस्त्रापि तस्मात्तत्परिवर्जयेत् ॥१२७॥ अदंडवान्दण्डयन् राजा दण्डयांश्चैवाप्यदण्डयन् । अयशो महदाप्नोति नरक चैव गच्छति ॥१२८|| क्योकि अधम से दण्ड बना लोगों में इस जन्म मे यश और (आगे को) कीति का नाश करने वाला है और परलोक में