पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४२४

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सामाभाग ४२१ ता राजमर्पपस्तिषस्ने त्रयो गौरसर्पपः ॥१३३॥ सपंपापड्या मध्यस्त्रियनं त्वेकरणशम् । पञ्चकृष्णलका मापम्ने सुवर्ण पोडश ॥१३॥ पाठ असा की एक 'गिता तीन लिचा की एक 'मन लप" गई और तीन राई का "वन सरमा" जानिय रमनपाक मला "यव" और तीन यब का गम "कृपल" Hir पान न काफ"माप" और मानह मापों का एक "मुवर्ण हाता॥१३॥ पले मार्यानधारः पलानि धरणं दश । ४ कृपने ममध्ने विजया रौप्यमापकः ॥१३५।। ते पोडश स्याङ्करम् पुराणश्चैव राजतः । कापिणं तु विजेवनानिकः ककि. पणः ॥१३॥ चारसुवर्ग का एक "पदरापनका एक धरण वराबर केर कृपा करोग्यमाशक (चाटीकामापर)जाने ।।१२५|| सोलह मापक का १ "प्य वरण" और चाही या 'पुगण भी होता है। गांव के का भर के पण (प) कापोरण का तान्त्रिक क्रार्षिक पण जान ॥१७॥ धरणानि दरा जेयः शतमानम्तु राजा । चतु-सावखिका निकी विज्ञेयन्तु प्रमाणतः ॥१३७॥ पणानां ने साधे प्रथमः साहस' स्मृतः । मध्यमः पञ्च विनेयः सहस्र त्वेव चाचमः ॥१३॥ दश धरण का एक चांदी का शतमान" जाने और प्रमाण