पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४२६

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अमाऽध्याय नत्वेवाघौसोपकारे कौतीही वृद्धिमाप्नुयात् । न चाधेः कालसंरोधानिसोऽस्ति न विक्रयः ॥१४३|| न भोक्तव्यो बलादाधि जानो वृद्धिमुत्सृजेत् । मृन्येन तापयेच्चैनमाधिस्तनान्यथा भवेत् ॥१४४। (भूमि गौ धन आदि) भागयुक्त पदार्थ बन्धक गिरवी रमाने तो पूर्वोक्त व्याज न म्हण करे और बहुत दिन होने पर भी उसके अन्यकी देने या बेचने का धनी का अविकार नहीं है ।।१४मा आवि (गिरवी की चीज) को जबरदत्ती नाग न करे । यदि भाग करे तो व्याज छोड़ देवे या मूल्ब ने उम (वन्तु म्बानी) को (उन वन्वालङ्कारादि को भागने में जा घाटा छाया है उनका मूल्य देकर) प्रमन करे नहीं मा वन्धर चोर कहलावे ॥१४॥ प्राधियोपनिधियोभौ न कालान्ययमहतः । अबहायाँ भवेतां तो दीर्घकालमवस्थितौ ॥१४॥ सन्त्रीत्यामुममानानि न नश्यन्ति कदाचन । घेनुरुष्ट्रो वहन्नथ्वा यश्च दम्पः प्रयुज्यते ।१४६। आधि धन्धक (निएवी) और उपनिवि (घमानन निपूर्वक अयोग के लिये गा हुई वस्तु) इन दानां मे कान बीतने से स्वत्व 'नष्ट नहीं होता । बहुत दिन की भी रक्त्री को जब स्वामी चाहे नव ले समता है ।।१४। नौतिपूर्वक (ग्रन्यास) उरभाग किये जाते गाव उंट, घोझा..वल श्रादि कामों में लाये जा ना इन पर का स्वामित्व नहीं जाना सता ॥१४|| यत्किञ्चिदश वर्षाणि सनिधौ प्रहने धनी । मुख्यमानं परैस्तूणों न स तबधुमर्हति ॥१४॥ J