४२४ मनुस्मृति मापानुवाद अजडश्चेदपोगण्डो विपये चारय भुज्यते । भन्नं तद्रव्यवहारेण भोक्ता तद् द्रव्यमहति ॥१४८|| यदि किसी वस्तु को अन्य लोग दश वर्ष तक वर्तते रहे और उसका स्वामी चुपचाप देखतारहे तो फिर वह उसे नही पा सकता ११४४ा जो (वस्तु स्वामी) पागल न हो और न पोगण्ड (बालक) हो और उसी के सामने वस्तु को पर पुरुप भोगता रहे तो बदालत में उसका अधिकार नहीं रहता किन्तु भोक्ता ही उसको पाने योग्य ॥१४॥ प्राधिः सीमा बालधनं निष्पापानिधिः स्त्रियः । राजस्न श्रोत्रियस्वं च न मागेन प्रणश्यति ॥१४॥ या स्वामिनाऽननुज्ञातमाधि मुक्त विचक्षणः । तेनाधृद्धिक्तिच्या तस्य भोगत्य निष्कृतिः ॥१५०॥ धन्धक (गिरवी) सीमा, बालधन, धरोहर प्रीतिपूर्वक भोगार्थ दिया धन, स्त्री और राजा का बन तथा श्रोत्रिय का धन इन को (दश वर्ष) मोगने से भी भोग करने वाला नही पासकता (इम से आगे १ पुस्तक मे एक जो अधिक है) ।।१४२|| जो चानाक मनुष्य आधि(गिरवी) को विना स्वामी के कहे भोगता है, उस उस भोग के बदले आवा सूर लेना चाहिये ॥१५॥ कुसीदद्धि गुण्यं नात्येति सकदाहृता । धान्ये सदे लवे वाह्य नातिक्रामति पचताम् ॥१५॥ कृतानुसारादधिका व्यतिरिक्ता न सिध्यति । कुसीदपथमाहुस्तं पंचकं शतमर्हति ॥१५२॥