पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४२८

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अमाऽध्याय ४२५ (रूपयों का) सूद एकवार लेने पर मूल धन से दूने से अधिक नहीं होसकवा और धान्य वृक्षके मूल और फल ऊन और वाहन५ गुने से अधिक नहीं हो सकते ॥१५१।। ठहराये से अधिक व्याज शास्त्र के विपरीत नहीं मिल सकता । ब्यान का मार्ग इसीको कहा है कि अधिक से अधिक) पांच रुपये सैकड़ा लिया जा सकता है ।।१५।। नातिसांवत्सरी वृद्धि न चादृष्टां पुनहरेत् । चक्रवृदिकालवृद्धिःकारिता कायिका च या ॥१५३॥ ऋणं दातुमशक्तोयः कर्तुमिच्छेत् पुनः क्रियाम् । स दला निर्जितावृद्धिकरणं परिवर्तयत् ।१५४। एक वर्ष हो जानेपर (जो माहवारी सूद हरा हो महणकरले) अधिक समय न बढ़ाव और मूह पर सूद और महावारी बद और सूद के दवाव से ऋण कराके उस पर चूह और शरीर से कोई काम सूद में न ले ॥१५शा जो ऋश दने को असनई है और फिर से हिसार करना चाहे वह चढ़ा हुआ सूर दार दूसरा करण (कागज-तमसुक बदल देवे ॥१५४॥ श्रदयित्वा तत्रैव हिरण्यं पापा । यावती संभवेद् वृद्धिस्तापती दातुमर्हति ॥१५॥ चक्रवृद्धि समारूता देशमाजव्यवस्थितः । विकामन्देशकाजी न तालमवाप्नुयात् ॥१५६।। यदि सूद भी न दे सके वो सूइ के वन को मूल में जाइ देवे और फिर जितनी संख्या ज्याज सहित हो उतनी देने योग्य है ॥१५५|| चक्र वृद्धि का आश्रय करने वाला महाजन देश काल से .