पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४३३

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मनुस्मृति मापानुवाद कामक्रोधौ तु संयम्य यार्थान् धर्मेण पश्यति । प्रजास्तमनुवन्ते समुद्रमिव सिन्धवः ॥१७॥ या साधयन्त छन्देन वेदयेद्धनिक नृपे । स राज्ञा तचतुर्भागं दाप्यस्तस्य च तद्धनम् ।१७६॥ जो (राजा) कामक्रोधों को छोड़ कर धर्म के कार्यों को देखता है प्रजा उसके अनुकुल रहती है. जैसे समुद्र के नदियां ॥१५॥ जो अधमर्ण स्वतन्त्रता से अपना रुपया वसूल करते हुवे उत्तमर्ण की राजा से सूचना (शिकायत) करे उस अधमर्ण से राजा वह रुपया और उसका चतुर्थीश दण्ड अधिक दिलावे ॥१७६|| कर्मणापि सभं कुर्याद्धनिकायाधर्णिकः। समविकटजातिस्तु दबाच्नेयास्तु तच्छनैः ।१७७ अनेनविधिना राजा मियात्रिबदतां नृणाम् | साक्षिप्रत्ययसिद्धानि कार्याणि समता नयत् ।१७८ समान जाति वा हीन जाति (करजदार महाजन का रुपया न दे सके तो) काम करके पूरा कर देवे और उत्तम जाति धीरे २ रुपया दे देवे ॥१७७ा राजा परस्पर झगड़ा करने वाले मनुष्यों के मुकहने कागज आदि और गवाहो से ऐसे बरावर न्याय को प्राप्त करे॥१८॥ कुलजे वृत्तसम्पन्ने धर्मज्ञे सत्यवादिनि ।। महापचे धनिन्यायें निक्षेपं निक्षिपेद्बुधः ॥१७६|| योयथा निधिद्धस्ते यमर्थ यस्य मानवः । स तथैर ग्रहीतन्यो यथा दायस्तथाग्रहः ॥१०॥ ,