पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४३४

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1 अष्टमाऽध्याय साबुल में उत्पन्न हुवे महाचारी धर्मामा सत्यभापण करनेवाले बड़े पन वान धनवान आर्य के पास बुद्धिमान पुरुप धगदर रक्स्य ॥९७९|| जो मनुष्य जिस प्रकार जिम द्रव्य को जिस के हाथ रवाने, उसको उसी प्रकार ग्रहण कराना योग्य है । जैमा देना वैसा लना ॥१८॥ यो निक्षेप याच्यमाना निधेतुर्न प्रयच्छति । स याच्यः प्रावियाकेन तन्निनेप्तुरसनिघौ ॥१८॥ साच्यभावे प्रविधिभिर्चयापसमन्त्रित । अपदेशैव संन्यस्य हिरण्यं तस्य तत्वतः ॥१८॥ जो धरोहर रखने वाले की धरोहर मांगने पर नहीं देता उमसे म्याचफर्ता गजपुरुष धरोहर रखने वाले के पीछे (मामने नही) मांगे ॥१७शा यति धरोहर रखने वाले का कोई सानी न हात राजा अपने नौकरों में जा कि अवम्या और स्वरूप से भले मानुन प्रतीत हो उनके हाथ वहानं बनवा कर (कि हमारे धन की धरोहर रख लीजिये हमारे यहा इसकी रक्षा नहीं हो सकती इत्यादि) अपना धन उम धरोहर न देन वाल के यहा रखवावे जैसे कि ठीक ठीक धरोहर रक्खी जाती है ।।१८।। में यदि प्रतिपधेत यथान्यातं यथाकृतम् । न नत्र विद्यते किञ्चिद्यत्परैरभियुज्यते ॥१८॥ तेषां न दयायदि तु सद्धिरण्यं यथाविधि । उमौनिगृह्य दाप्यः स्यादिति धर्मस्य धारणा १८४॥ यदि वह (राजा का भेजा हुवा पुरुष ) ज्यों का त्यो अपनी धरोहर मांगन से पा नावे तो राजा जान ले कि और लोगों ने