पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४३५

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४२२ मनुस्मृति भाषानुवाद सो घरोहर न देने की मालिश (अभियोग) की है, उन का उस पर कुछ नही चाहिये ॥१८॥ और यदि छन (राजपुरुषों) का यथाविधि धरोहर न देवे तो राजा पकड़वा कर उस से दोनों को विलावे ( अर्थात् पहिली भी नालिश सच समझे) यह धर्म का निर्णय है ॥१८॥ निक्षेपापनिधी नित्यं न देयौप्रत्यनन्तरे। नस्यता विनिपाते तावनिपाते वनाशिनौ ॥१८॥ स्वयमेषतु यो दधान्मृतस्य प्रत्यनन्तरे । न त राजा नियोक्तव्यान निचेतुश्च बन्धुभिः १८६॥ घरोहर और महनी धरने और देने वाले के वारिसों को न दे और यदि धरने वाला और मानो दन वाला विना अपने वारिलों को कहे मर जाने लगे वे धरोहर और महनी नष्ट हो जाती है, परन्तु जीवते हुवे अविनाशी हैं ॥१८॥ जो स्वयं ही मरे हुवे के वारिसों को रखने वाला उस का धरोहर वा मदनी का धन दे देवे तो राजा और धरोहर वाले वारिसों का कुछ रोक टोक (मदाखलत) करनी योय नहीं है ।।१८६॥ अच्छलेनैव चान्विच्छेत्तमर्थ प्रीतिपूर्वकम् । विचार्य तस्य वा पूर्व साम्नैव परिसाधयेत् ॥१८॥ निक्षेपेष्वेषु सर्वेषु विधिः स्यात्चारसाधने । समुद्रेनाप्नुयात्किञ्चियदि तस्मान संहरेत् १८८ चदि उसके पास द्रव्य हो तो छलरहित प्रीतिपूर्वकही लेना वा इस का वृत्तान्त समझ कर सीधेपन से ही उस से प्राप्त (बराम.) करे ॥१८॥ इन सब धरोहरों में सही करने की यह विधि है।