पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४३६

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अाठमाऽध्याय ४२३ (मुहर) चिन्ह सहित दिये हुवे में यदि कुछ मुहर (चिन्ह ) के हरण न करे तो कुछ शङ्का नहीं पाई जाती ||१८८॥ चौरह तं जलेनोडमग्निना दग्धमेव वा । न दयायदि तस्मात्स न संहरति किंचन ||१८६॥ निक्षेपस्यापहारमनिक्षेप्तारमेव च। सबैरुपायरबिच्छेच्छपथैश्चैव वैदिक ॥१०॥ जो चारों ने चुराया और जो पानी में डुव गया तथा आग में बल गया, वह दन्य घरने वाजा न थे, यदि उस में उसने स्वयं कुछ नहीं लिया है नो ॥१८९॥ धरोहर के हरण करने वाले और धरोहर विना रक्खे मांगने वाले को राजा सम्पूर्ण (सामादि) उपायों और वैदिक शपयों ( हलफों) से पता लगाने का उद्योग करें ॥१९॥ यो निचे नार्पयति यश्चानिक्षिप्य याचते । वाघुमौ चौरवच्छास्यौ दाप्यौ वा तत्सम दमम् ।१६१ निक्षेपस्यापहार तत्सम दापयेदभम् । तथापनिावहारमदिरापेण पार्थिवः ॥१९॥ जो धरोहर नहीं देता और जो बिना रखे जाल करता है, वे दोनों चोर के समान दण्ड देन योग्य हैं वा उस धन के समान जुरमाना देने योग्य हैं ।।१९१|| धरोहर (अमानत) हरण करने वाले का राजा उसी के समान दण्ड देव तथा पूर्वोक्त उपनिधि के हरण करने वाले को भी यह दण्ड देवे ॥१९२।। उपधाभिश्च यः कश्चित्परद्रव्यं हरेचरः । ५५