पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भूमिका ४१ संस्कारावैदिकः स्मृतः औपनायनिकः स्मृतः । पाठभेड़ है। दूसरे एक पुस्तक मे- गृहाग्निपरिक्रिया गृहार्थोग्निपरिग्रहः । पाठ है और अन्य दो पुस्तकों मे इसी की जगह- गृहायोग्निपरिक्रिया पाठान्तर है। तो क्या ठिकाना है कि यह श्लाक मनुप्रोक्त है ।। इसी ६७ वे से आगे एक पुस्तक मे यह श्लोक अधिक है। अग्निहोत्रस्य शुश्रूषा सायमुद्वाममेव च । कार्य पल्या प्रतिदिनमिति कर्म च वैदिकम् ।। ऐसे ही एक पुस्तक में यह श्लोक ११७ से आगे मिलाया गया है कि- जन्मप्रभृति यत्किञ्चिच्चेतसा धर्ममाचरेत् ।। तत्सर्व विफलं झेयमेकहस्वाभिवादनात् ॥ एक हाथ से सलाम करने की निन्दा यवनकालीन जान पड़ती है। नन्दन भाष्यकार के मत में भी शब्दं किति०" यह १२४ वा श्लोक १२३ ३ 'नामधेयस्य०" के स्थान में पाया जाता है ।। इस से भागे १२ वें अध्याय तक पाठभेद, पाठाधिक्य वा जो २ अधिक श्लोक किन्हीं पुस्तकों में पाये गये वे अनुमान ११९ के हैं। और उसी स्थान पर [ ] चिन्ह के भीतर हम छापते गये है ।। एकादशाब्याय मे प्रायश्चित्तार्थ जिन वेद मन्त्री के प्रतीक श्लोकों मे आये हैं वे र मन्त्र वेदों के मण्डल सूक्त अध्याय आदि पते खोज कर दिये हैं। इस पुस्तक का विषयसूची पृथक भी अब इस लिये छपा दिया है कि यद्यपि अध्याय १ श्लोक १११ से ११८ तक १२