पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मनुस्मृति मापानुवाद आवा भाग लेने वाले (चार) मुख्य ऋषि होते हैं और उससे आधी दक्षिणा रहण करने वाले दूसरे (चार) ऋत्विज होते हैं। ऐसे ही तीसरे भाग को ग्रहण करने वाले (चार) और चतुर्थ को ग्रहण करने वाले (चार, ऐसे साजह ऋस्मिक होते हैं)।२१०॥ संभ्य स्वानि कर्माणि कुटद्धिरिह मानी । अनेन विधियोगेन कव्यांशप्रकल्पना ॥२१॥ धर्मार्थ येन दरस्यारकस्मैचिद्याचते धनम् । पश्चाच्चन तथा तत्स्यानदेयं तरतद्भवेत् ।।१२।। मिल कर काम करने वाले मनुन्धो को यहां इस विधि से बांट करना योग्य है ।।२११जिसने किसी मागने वाले को धर्मार्थ जो धन दे दिया फिर उसका दुवारा दान नहीं कर सकता क्योकि वह दिया हुआ धन उसका नही रहा ।।२१२।। यदि संसाधन दालोमेन वा पुनः । राज्ञादाप्यासुवर्ण स्यातस्यस्तेगस्य निष्कतिः २१३ दचस्यैपोदिता धर्मा ययावदनपक्रिया । अतऊच प्रवक्ष्यामि वेतनस्यानपक्रियाम्।।२१४॥ यदि दान किये हुवे धनको लाम से या अहङ्कार से छीने तो राजा उस चोरी की निष्कृति को 'सुवर्ण का दण्ड दे ॥२१३।। यह दिये हुवे के अलट फेर करने का ठीक २ धर्मानुकूल निर्णय कहा । इस के उपरान्त वेतन (तनख्वाह) न देने का निर्णय करता हूं ॥२१४॥ मतोनाचान कुर्यायो दर्पाकर्म ययादितम् । स दण्डयः कृष्णलान्यष्टौ न देयं घांस्यवेतनम्।२१५॥ .