पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४४३

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मनुस्मृति भाषानुवाद उसका राना राज्य से निकाल दे।।२१९॥ और उक्त समय व्यमि- चारी को पकड़वाकर राजा चार सुवर्ण और कनिष्क और ? चांदी का शतमान दण्ड दे ॥२२०॥ एतद्दण्डविधिं कुर्याद्धामिकः पृथिवीपतिः । ग्रामजातिसमूहेषु समयध्यभिचारिणाम् ।।२२।। क्रीत्वा विक्रीय वा किञ्चिद्यस्येहानशयो भवेत् । सोऽन्तर्दशाहासव्यं दनाच्चैवाददीत च ॥२२२।। धार्मिक राजा ग्राम और जातिके समूह मे प्रतिन्ना के व्यभि- चार करने वालों को ऐसे दण्ड देवे ।।२२।। काई द्रव्य खरीदकर वा वेचकर दश दिन के बीचमें पसन्द न हो तो वापिस करदे और ले सकता है ।।२२२॥ परेण तु दशाहम्य न दद्यानापि दापयेत् । आददानोददच्चैव राजादण्डयः शतानिपट् ।।२२३॥ यस्तु दोपवती कन्यामाख्याय प्रयच्छति । तस्य कुन्निपादण्डं स्वयं पएणवति पणान् ॥२२४॥ दश दिनके ऊपर न देवे न दिलावे नहीं तो देने और लेने वाले दोनों का राजा से ६०० पप के दण्ड योग्य हैं । (२२३ से भागे दो पुस्तकों मे ३ श्लोक तथा एक पुस्तक में पहला एक ही श्लोक अधिक है । परन्तु कुछ विशेष प्रयोजनीय नहीं होने से हमने उद्- धृत नहीं किये) ॥२२३॥ जो दोपवाली कन्याका बिना कहे विवाह करता है उस पर राजा आप ९६ पण दण्ड करे ॥२४॥ अकन्येतितु या कन्यां व यावषेण मानवः । स शतं प्राप्नुयाइण्डं तस्यादेापमदर्शयन् ।।२२५॥