पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४४५

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मनुस्मृति मापानुवाद । कुछ चारे की कमी आदि हो तामी जवाबदेहाचरवाहा हो।।२३०॥ गोपः क्षीरसृतो यस्तु स दुद्यादरानोवराम् । गोस्वाम्यनुमते भृत्यः सा स्यात्पालेऽमृने भृतिः॥२३१॥ नष्टं विनष्टं ऋमिभिः श्वहतं विपमे मृतम् । हीनं पुरुषकारेण प्रवासाल एव तु ॥२३॥ जो गोपाल दृध पर ही मृत्य हो वह स्वामी की अनुमति से १० गौओ मे श्रेष्ठ १ गौ को भृति (तनख्वाह) के लिये दहन कर ले वही उसका वेतन है । (उसी एक गौ के दोहन से दश गाय का हम करें)॥२३१|| जो पशु खाया जावे या कीडे पड़कर खराब हो जावे, कुनो से माग जावे या पाव ऊपर नीचे पड़नस मर जावे या पुरुषार्थहीन होजावे तो (स्वामी को) गोपाल ही पशु दवे २३ विधुष्य तु हृतं चौरर्ने पालो दातुमर्हति । यदि देशे च काले च स्वामिन स्वस्पर्शसति ।२३३॥ कौँ चर्म च पानांश्च वन्ति स्नायूंच रोचनाम् । पशुपु स्वामिनां दद्यान्मृतेष्वङ्गानि दर्शयेत् ।।२३४. यदि चोर जबरदस्ती छीन ले तो गोपाल को (पशु देना) योग्य नहींहै यदि अपने स्वामीले उमका वृत्तान्त उचित देशकालमे कहदे IRऔर यदि म्बयं पशु मर जावे तो उस के अङ्ग स्वामी को पागोल दिखला दे और कान त्वचा, बाल चम्ति, स्नायु और रोचना स्वामी को दे देवे ॥२४॥ अजाविक तु संरुद्ध वृकः पाले वनायति यां प्रसह्यवृकाहन्यात पालं तत्किल्वियं भवेत् ॥२३॥