पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४४६

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अष्ठमाध्याय तामां पेवरुद्धानां चरन्तीनां मिया बने । यामुस्तुत्य शाहन्यान पालन्तत्र किन्धिपी ॥२३६॥ वरी और भंड़ का भड़िय राकलें और चरवाहा छुड़ाने को न जावे इस पर जिन का भड़िया मार डाले, उनका पातक चरवाहे को हो । पान्नु यहि न (चरवाह में) घरी हुई बकरी भड़ों को एकाएक पाकर मड़िया मार डाले तो उसका पातकी चरवाहा न होना धनु-शत परीहागे ग्रामस्थ स्यात्समन्ततः । शम्पारावास्यो वापि त्रिगुणोनगरस्य तु ॥२३७|| नत्रापरिवृतं धान्य विहिस्यः पशवायति । न तन्त्र प्रणयदएडं नृपतिः पशुरक्षिणाम् ॥२३८॥ . प्राम के आम पास चार सौ हाथ या चार लाठी फैकन की दूरी तक दी मूमि (परिहार) और नगर में आम पान उम की तिगुना रखनी उचित है ॥२२॥ उम परिहार स्थान में बाड़ रहित धान्य को यदि पशु नष्टकर नी राजा चरवाहोको इण्ड नकर।२३८॥ वृति तत्र प्रवीत यामुष्टी न विलोकवेत् ! छिद्रं च वाग्येत् सर्व श्वसूकरमुग्वानुगम् ॥२३६।। पथिचत्रे परिवृतं प्रामाननीयज्यवा पुनः । सपानः शतदण्डाही विपालाचारयेत्पशून् ।।२४०।। उस ग्यन के बचाने का इतनी ऊंची (कादेनी) वार करे जिस में न देख सके और बीच के निद रोक जिनस कुते और सुवर का मुख न जा सके ।२६९॥