पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४४७

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४४४ मनुस्मृति भाषानुवार बाड़ दिये हुवे मार्ग के पास के क्षेत्र में या प्राम समीपवर्ती क्षत्र में यदि चरवाहा साथ होने पर पशु खेत चरे तो चरवाहा १०० पण दण्ड के योग्य है और विना चरवाहे पशुओ को खेत का रखवाला हांकडे ॥२४॥ क्षेत्रेष्वन्येष तु पशुः सपादं पणमहति । सर्वत्रतु सदा देयः क्षेत्रिकस्येति धारणा ॥२४१॥ अनिर्दशाहां गां सूतां धृपान्देवपशंस्तथा । सपालान्याविषालान्यानदण्ड यान्मनुरप्रवीन् ।२४२।। अन्य स्वेता को पशु भक्षण करे तो चरवाहा सपाद (सवा) पण दण्ड के योग्य है और सब जगह जितनी हानि हुई हो उतनी खेत पाले का दे, यह निश्चय है ।।२४१|| दश दिन के भीतर की वियाई हुई गाय, सांड देवता संबन्धी पशु (जो देवकार्य हवनार्थ घृतादि सम्पादनार्थ गौ आदिपाले रहते हो) के रखवाले के साथ वा विना पशपाल के किसी का खेत खाने पर (मुम) मनु ने दण्ड नहीं कहा ॥२४॥ क्षेत्रियस्यात्यये दण्डो भागाद्दशगुणो भवेत् । ततोऽपदण्डो मृत्यानामज्ञानात्क्षेत्रियस्यतु ।।२४३॥ एतद्विधानमातिष्ठेद्धार्मिक पृथिवीपतिः। स्वामिनांच पशूनांच पालानांच व्यतिक्रमे ॥२४॥ यदि खेत वाले के अपने पशु खेत चरें तो उसको राज भाग से दशगुणा दण्ड हो और सेतीवाले के अचानसे नौकरों की रक्षा में पशु भक्षणकरें तो उससे आधा दण्ड हो ।२४३॥ स्वामी और पशु तथा चरवाहे के अपराध में धार्मिक राजा इस प्रकार विधान करें।Rail