पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४४८

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अष्टमाऽध्याय सीमां प्रतिसमुत्पन्न विवादे ग्रामयोद्धयोः। ज्येष्ठे मासि नयेत्सीमां सुप्रकाशेषु सेतुषु ॥२४॥ सीम वृक्षांश्च कति न्यग्रोधाश्वत्थ किशुकान् । शाल्मलीन्शालतालांश्च क्षीग्णिश्चैवादपान्।२४६॥ दो प्रामों की सरहहके झगड़े उत्पन्न होने पर ज्येठ मासमे जब तृष्णादि शुष्क होने से सरहद्द के चिन्ह सुप्रकाशित हो तव उसका निश्चय करे ।।२४५|| सीमा (सरहह) का चिन्ह वट, पीपल पलाम मेभर साल और ताल तथा अन्य दूध वाले घृक्ष स्थापित करे ।२४६ गुल्मान्वेण च विविधाम्छमीवल्लीस्थलानि च । शरान्कुन्जकगुन्माश्च तथासीमा ननश्यति ।।२१७॥ तड़ागान्युदपानानि वाध्यः प्रसरणानि च । सीमासंविपु कार्यारेख देवतायना ने च ।।२४८|| गुल्म नाना प्रकार के बांस शमी वल्लीस्थल शर और कुञ्जक- गुल्म स्थापित करे जिससे सीमा नष्ट न हो ||४७|| तगाड कूप बावड़ी मारना और यज्ञ मन्दिर सीमाकं बोडोपर वनावे ( जिससे कि बहुत से मनुष्य जलपानादि करने तथा यज्ञार्थपरम्परासे सुनकर आते रहे इसी से वे सव साक्षी हो) २४८|| उपच्छन्नानि चान्नानि सीमालिङ्गानिकारयेत् । सीमाज्ञानेनृणां वीच्य नित्यंलोकेविपर्ययम् ॥२४६।। अश्मनोऽस्थीनि गोषालांस्तुपान्मस्मकपालिकाः । फरीपमिष्टकाङ्गारांवर्करावालुकास्तथा ॥२०॥