पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

. ४४६ मनुस्मृति भाषानुवाद यानि चैव प्रकाराणि कालाद्भूमिर्न भज्ञयेत् । तानि सन्धिषु सीमायामप्रकाशानि कारयेत् ।।२५१|| एतैर्लिङ्ग नये सीमां राजा विवदमानयोः । पूर्वमुक्तया च सततमुदकस्यागमेन च ॥२५२|| सीमा निर्णय में सर्वदा इस लोक मे मनुप्योको भ्रम देख कर अन्य गूढ़ सीमाचिन्ह भी स्थापित करावे ॥२४९|| पत्थर हड्डी गोवाल तुप, भस्म, खपड़ा, पारना, ईट, कोयला, शर्करा और बाल ॥२५०॥ और जाकि इस प्रकार की वस्तु हो जिन्हें बहुत दिनो मे भी मूमि न खा जावे रनको सीमा की सन्धियो मे गुप्त करावे ॥२५शा राजा इन चिन्हो और पूर्व योग तथा नदी आदि से जल के मार्ग इत्यादि चिन्हों से लड़ने वालो की सीमा का निर्णय करे ।२५२॥ यदि संशय एव स्याल्लिङ्गानामपि दर्शने । साक्षिप्रत्ययएव स्यात् सीमावादविनिर्णयः॥२५३।। ग्रामीयककुलानां च समक्षं सीम्निसाक्षिणः । प्रष्टव्या सीमलिङ्गानि तयाश्चैव विवादिनोः १२५४॥ चिन्हों के देखने पर भी संशय रहे तो साक्षी के प्रमाण से सीमा विवाद का निश्चय करें |२५|| ग्राम के कुलो और वारी प्रतिधादियो (मुद्दई मुद्दआईलइ) के समद सीमा में साक्षियो से सीमा के चिन्ह पूछने योग्य है ॥२५४।। ते पृष्टास्तुयथा व युःसमस्ताः सीम्निनिश्चयम् । निवघ्नीयाचया सीमा सर्वास्तांश्चैव नामतः॥२५५।।