पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४५०

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अष्टमाऽध्याय शिगेमिस्तं गृहीत्वोत्री सग्विणो स्त,वाससः। सुखतः शारिताः स्वः स्वैर्नयेयुत्तममञ्जसम् (२५६॥ सीमा के विषय में निश्चय के लिये वे पूर्व हुवे लोग जैमा को वैसे ही सब सीमा का वाधे और उन सब साक्षियों के नाम लिसले ॥२५५ साक्षी फूलों की माला और लाल कपड़ा पनि कर शिर पर मिट्टी के ढल उठा कर कह कि जो हमारा सुकृत्त है से निप्पल हो जो हम असत्य कहे ॥२५॥ यशक्तन नयन्तस्से घूयन्ते मत्यसाक्षिण | विपरीत नपन्तस्तु द्रायाः स्युद्धि शतदमम् ॥२५७॥ सान्यभावेतुनत्मारो ग्रामा. सामन्नवासिनः । सीमाविनिर्णियं कुयु - प्रयता राजमनियों ॥२५८|| व मत्यप्रधान साक्षी शास्त्रोक विवि से निर्णय में महायक रह कर निप्पाप होते है। और असयने निधय कराने वालों को नापी पण दण्ड दिलावे ॥२५॥ नानी के अभाव में ग्राम पाम के जमादार ४ श्रम के निवासी धर्म से राजा के सामने सीमा का निर्णय करे ॥२८॥ -सामन्तानामभावे तु मौलानां मी म्नमाक्षिणाम् । इमानप्यनुयुञ्जीत पुरुपान्यनगोचरात् ॥२५॥ ध्याधांश्याकुनिकान्गापाकैचर्नान्मूलम्बानकान् । ध्यालग्राहानुञ्छर तीनन्याश्च वनचारिणः २६०/ सामन्त = साम पामक जड माक्षियों के अभाव में उन वनचर पुरुषों का भी साक्षी करले ॥२९॥ व्याधशा कुनिक गोप कैवर्तक