पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४५१

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मनुस्मृति भाषानुवाह मूल खोदने वाले और सपेरे तथा उच्छवृत्ति और दूसर बन- चारियों को २६०॥ ते पृष्टास्तु यथा व युः सीमांसन्धिषु लक्षणम् । तत्तथास्थापयेद्राजा धर्मेण आमयोद्धयोः ॥२६१॥ क्षेत्रकूपतडागानामागमस्य गृहस्य च । सामन्तप्रत्ययो ज्ञयः सीमासेतुविनिर्णयः ॥६६२|| वे पूछे हुवे लोग जैसे सीमासन्धि का लक्षण बतावे राजा धर्म से दोनों के बीच में सीमा का वैसे ही स्थापन करे ॥२६क्षेत्र, ऋष, तड़ाग याग और गृहो के सीमा सेतु के निर्णय में सामन्त समीपवासियों की प्रतीति करे ॥२६॥ सामन्ताश्चेन्मपान युः सेतो विवदतां नृणाम् । सर्वे पृथक्पृथग् दण्डया राज्ञा मध्यमसाहसम् ।२६३॥ गृहतडागमारामं क्षेत्रं चा भोपयाहरन ! शतानि पञ्चदण्डय स्यादज्ञानाद् द्विशतादमः ।२६४। विवाद करने वाले मनुष्यों के सेतु निर्णय मे यदि सामन्त झूठ बोलें तो राजा सब को मध्यमसाहस' ७ll-) अलग २ दण्ड ६॥२॥ घर तडाग याग वा क्षेत्र को भय देके जो हरण करे स को पांच सौ पण दण्ड दे और अज्ञान से हरण करने में दो सौ पण दण्ड AIR६ सोमायामविपवायां स्वयं राजैव धर्मति । प्रदिशेमिमेतेषामुपकारादिति स्थितिः ॥२६॥ सीमा का काई पर्याप्त प्रमाण न मिलने पर धर्म का जानने