पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४५२

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अटमाऽध्याय ४४९ बाला राजा स्वयं ही उपकारसे इनकी भूमि वांदे । यह मर्यादा है- (२६५ से आगे यह श्लोक दो पुस्तकों में अधिक है:- [धजिनी मसिनी चैव निधानी भयवर्जिना । राजशासननीता च सीमा पञ्चविधा स्मृता ।। एपोऽखिलेनाभिहितो धर्मः सीमाविनिये । अत ऊर्च प्रवच्यामि शाक्पारयविनिर्णयम् ।२६६। यह सम्पूर्ण मीमानिधय का धर्म कहा अब वाणी की क्रूरता (गाली) का निर्णय कहता हूँ ॥२६६|| शतं ब्रामणमाक्रश्य क्षत्रियो दण्डमर्हति । श्योप्यर्धशतं दवा शूद्ररतु वधमर्हति ॥२६७|| पञ्चाशद्घाह्मणोदएडयः क्षत्रियस्याभिशंयने । ये स्यादर्धपञ्चाशद्रे द्वादशादमः ॥२६८॥ प्राह्मण को गाली देन से नत्रियमो पण टएइ योग्य है और वैश्य मी डेढ़ सौ या दो सौ पण दण्ड और शह तो (बेत आदि से) पीटने योग्य है | और ब्रामण चत्रिय को गाली है नो पचास पण वैश्य को गाली दे तो पञ्चीस पण और शूद्र का गाली दे तो बारह पण दण्ड योग्य है Real समवणे द्विजातीनां हादरौत्र व्यतिक्रमे । बादवरचनीवेषु तदेव द्विगुणं भवेत् ॥२६॥ द्विजातियों को अपने समान वर्णमे गाली श्रादि देने पर बारह पण दण्ड दे (मो बहिन की गाली आदि) न क हने योग्य गावी प्रदानादि में उसका दूना (२४ पण दण्ड दे) (इस से आगे ५६