पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४५६

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प्रटमाऽध्याय कठ्या कृताकोनिर्वास्यः स्किचं वास्यावकर्तयेत् ।२८॥ अवनिष्ठीबतो दर्पाद् द्वाोष्ठौ छेदयेन पः । अवमूत्रयता मेदमारार्धयता गुदम् ।।२८२॥ उच्च के साथ बैठने की इच्छा करने वाले नीच की कटी (कमर) में (दाग) चिन्ह करके निकाल दे या उस के चूतड़ को थोड़ा कटवा देवे (जिसमे न मरे) ।।२८।। अहङ्कार से नीच उच्च के ऊपर थूके तो राजा उसके दोनों होठ काटे और उस पर भूत्र डाले तो लिङ्ग और पादे तो उसकी गुदाका छेदन करे ।२८२ केशेषु गृक्षता हस्तौ छेदयेदविचारयन् । पाइयो डिकायां च ग्रीवायां वृषणेषु च ॥२८३|| स्वग्मेदका-शतं दण्डयो लोहितस्य च दर्शकः । मांसमेचा तु परिनष्कान्प्रवास्यस्लस्थिभेदक. २८४ अहार से (मार बालने का) बाल पकडने मालेके दोनो हाथो को विना विचारे (शीव) कटादे पैर खादी ग्रीवा तथा अण्डकोश को (मार डालने के विचार से) पकड़ने बालेके भी (हाथ कटवादे) ॥२८शा त्वचा का भेद करने वाले पर सौ पण दण्ड करना चाहिये और रक्त निकालने वाले को भी सौ पण दण्ड देवथा मांस के भेदन करने वाले को निष्क" दण्ड दे चौर अस्थि- भेदक को देश से निकाल दे ।।२८४|| वनस्पतीनां सर्वेषामुपमागं यथा यथा । तथा तथा दमा कार्यो हिंसायामिति धारणा ॥२८॥ मनुष्याणां पशूनां च दुःखाय प्रहते सति । यथा यथा महःख दण्ड कुत्तिया तथा ॥२८॥ .