पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४५७

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1 मनुस्मृति भाषानुवाई सम्पूर्ण वनस्पतियोंका जैसार उपभोग करे वैसा २ हिंसा(हानि) में दण्ड दिया जावे। यह मर्यादा है ॥२८५|| मनुष्यों और पशुओं को पीड़ा के लिये प्रहार करने पर जैसे पीड़ा अधिक हो वैसे ३ दरड भी अधिक करे ॥२८॥ अनावपीडनायां च व्रणशोशित गोस्तथा । , समुत्थानव्ययं दाप्यः सर्वदण्डमथापि वा ॥२७॥ द्रव्याणि हिस्यायो यस्य ज्ञानता ज्ञानताशीवा । स तस्योत्पादयेत्त ष्टिराज्ञो दयाञ्च तत्समम् ||२८|| अको (चरणादि) और अतथा रक्त की पीड़ा होने पर चोट करने वाला स्वस्थ होने का सम्पूर्ण खर्च दे अथवा पूर्ण दण्ड हे ॥ ८॥ जो जिस की वस्तु का जानकर धावे जाने नुकसान कर वह उसको प्रसन्न करे और राजाको उसीके घरावर दण्डदे RI चर्मचामिकभाण्डेषु काठलाष्ठमयेषु च । मूल्यापंचगुणो दण्डः पुपमूलफलेषु च ॥२८॥ यानस्य चैव यातुश्च यानस्वामिन एव च । दशातिवर्तनान्याहुः शेष दण्डो विधीयते ॥२६०|| चाम और चमड़े के बने मशकादि वर्तन तथा मिट्टी और लकड़ी की बनी वस्तुनो के मोल से पांच गुणा एण्ड ले । और पुष्पमूल फलों में भी ऐसा ही करें)॥२८९॥ सवारीके चलाने वाले तथा स्वामी को दश अवस्थायें दिखो अगला श्लोक) छोड़कर शेष अवस्थाओं में दण्ड कहा है ।।२५०॥ छिमनास्थे मग्नयुगे तिर्यक् प्रतिमुखागते ।