पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४५८

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प्रटमाऽध्याय भमङ्गच यानस्य चक्रभङ्ग तथंव च १२६॥ छेदने चै यन्त्राणां योक्तरसम्योस्तथैव च । आक्रन्दे चाप्यपहीति न दण्ड मनरनवी ।२६२॥ नाथ के टूटने, जुबे के हटने नीचे के कारण टेढे वा अड़ कर चलने रथ के घर टूटने और पहिये के टूटने ॥२९१और वन्धनादि यन्त्र टूटने और गले की रस्मी टूटने लगाम हटने पर और हटो यचो" ऐमा करते हुये (मारथि) से कोई किसी का नुकसान होने पर (मुझ) मनु ने दण्ड नहीं कहा २९२|| पत्रापवर्तने युार्य वैगुण्यात्माजकस्य तु । त्रस्वामी भवेदण्डयो हिंसायां द्विशत दमम् ।२६३ प्राजकरवेदवेदाप्तः प्राजको दण्डमर्हति । मुग्यस्था प्राजके नाप्ने सबै दण्डया शतशतम् ।२६४) जहां सारथि के कुशल (शियार) न होने से रथ पर उस पलता है उसमें हिंसा (नुकमार) होनेर स्वामी दाप्तौ पण दण्ड के योग्य है और यदि सारथि कुशल हो तो बड़ी (सारथी) दोसौ पण दण्ड योग्य है और सारथि कुशल न होते हुवे यान पर सवार होने वाले सव नौ २ पण दण्ड योग्य है ।।२९४॥ सचेत्त पथि संरुद्धः पशुभिर्वा रथेन वा । प्रमापयेत्प्राणभृतस्तत्र दण्डोविचारितः (२९५॥ मनुष्यमारणे क्षिप्तं चौखस्किन्मिएं भवेत् । प्राणमृत्यु महत्स्वधं गोगजोष्टहयादिपु ।२६६|