पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४५९

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४५६ मनुस्मृति भाषानुवाद वह सारथी यति पशुओं से वा अन्य रथ से रुके हुये भी रथ को चलावे उससे जीव मर जावे तो उसको बिना विचारे दण्ड रे IR९५|| (सारथि के रथ चलाने से मनुष्य के मर जाने में चोर का (उत्तम साहस) दण्ड दे और बडे पशु चैल हाथी अट घोड़ो के मर जाने पर अर्ध (पांच सौ पण) दण्ड दे ।।२९६।। बुद्रकाणां पशूनां तु हिंसायां द्विशतोद मः । पंचाशत् भवेदण्डः शुभेषु मृगपक्षिपु ।२६७) गर्दमाजाविकानां तु दण्डः स्यात्पंचमापिकः । भाषकस्तु भवेदण्डः श्वसूकरनिपातने २९ क्षुद पशुओं की हिंसा में दो सौ (पण) दण्ड हो और अच्छे मग पक्षियों की (हिंसा) में पचास (पण) दण्ड हो ॥२९॥ गधा बकरी भेड़के मरजाने में पांच 'मापक दण्ड और कुत्ते वा सूवर के मर जाने पर एक मापक दण्ड देवे ॥२९॥ भार्या पुत्रश्र दासश्च प्रयो भ्राता च सादरः। शाप्तापराधास्ताड्याः स्यूरज्ज्वा देणुदलेनवा ।२६६) पृष्ठस्तु शरीरस्य नोत्तमाओं कथञ्चन । अतोन्यथातु प्रहरप्राप्तः स्याचौरकिन्चिपम् ॥३०० भार्या पुत्र दास हरकारा और छोटा सहोदर भाई अपराध करने पर रस्सी या वाल की छडी से ताहनीय है ॥२९९॥ (परन्तु इन को) शरीर के पीठ की और मारे शिर में कभी न मारे इससे विपरीत मारने वाला चोर का दण्ड पावंगा ।।३००। एषोखिलेनाभिहितो दण्डपारुप्यानियः । स्तनस्यात प्रवक्ष्यामि विधि दण्डविनिर्णये ॥३०॥