पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४६२

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अष्टमाऽध्याय ४५९ बालबद्धातुराणां च कुर्वता हितमात्मनः ॥३१२॥ पापियों के निग्रह और साधुओं के संग्रह से राजा सदा पवित्र होते हैं। जैसेयज्ञ करनेसे द्विज ॥३१शा (दुख से) आक्षेप करने वाले कार्यार्थी तथा बाल वृद्ध धातुरो को अपने हित की इच्छा करने वाला राजा क्षमा करे ।।३१२।। य. क्षिप्तो मर्पयल्यातस्तेन स्वर्गे महीयते । यस्त्वैश्वान क्षमते नरकं तेन गच्छति ॥३१३॥ राजा स्तेनेन गन्तव्यो मुक्तकेशेन धाक्वा । आचचाणेन तस्तेयमेषकर्मास्मिशाधिमाम् ॥३१॥ जा राजा हु खितो से श्राक्षेप किया हुवा सहता है वह स्वर्ग में पूजा जाता है और जो ऐश्वर्य के मद से क्षमा नहीं करता उससे वह नरक को जाता है ।।३१।। चोरी करने वाला सिर के बाल खोले हुवे और दौड़ता हुवा राजा के पास जाकर उस चोरी को कहता हुवा यह कहे कि मुझे दण्ड दो में इस काम का करने थालाहू ॥३१॥ स्कन्धनादाय सुतल लगुडं वापि खादिरम् । शक्ति चोमयतस्तीणामायत दण्डमेव वा । ३१५॥ खैर की लड़की के मूसल वा लट्ठ, वा जिस मे दोनो ओर धार हो ऐसी वरची या लाहे का दण्डा कन्धे पर उठा कर (कहे कि इस से मुझे मारी। ३१५ से आगे एक पुस्तक मे एक श्लोक अधिक मिलता है । यथा- (गृहीत्वा मुसलं राजा सकृद्धन्यात् त स्वयम् । क्थेन शुध्यने स्तेना ब्रामणस्तपसव वा ॥ ]