पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४६४

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अष्टमाऽध्याय (पीस मोणं का एक कुम्भ, ऐसे) दश कुभा से अधिक धान्य का चुराने वाला अधिक वर (पीटने) के योग्य है और शेप में उसका ११ गुणा धन दिलवावे ॥३२॥ तया धरिममेयानां शताहम्यधिक बधः । सुवर्णरबतादीनामुत्तमानां च वाससाम् ॥३२१॥ पञ्चाशतस्त्वम्यधिक हस्तच्छेदनमिष्यते । शेष त्वेकादशगुणं मूल्याइएड प्रकल्पयेत् ॥३२२।। जैसे धान्य मे वध कहा है वैसे ही (तराजू वा कांटा) तुनादि से तोलने योग्य सुवर्ण चांदी आदि और उत्तम वस्त्र चुराने पर भी १०० से अधिक पर दण्ड जाना ॥३२॥ और पचास (पल) से ऊपर चुराने से हाथ काटने चाहिये । शेष (एक से उनचास तक) चुराने में उसके मूल्य से ११ गुणा दण्ड देवे ॥३२२|| पुरुषाणां कुलीनानां नारीणां च विशेषतः । मुस्थानां चैव रत्नानां हरणे वधमर्हति ॥३२३।। महापशूनां हरणे शस्त्राणामौपयस्य च । 'कालमासाधकार्य च दण्डं राजा प्रकल्पयेत् ।।३२४॥ बड़े कुल के पुरुषों और विशेष कर स्त्रियों और अधिक मूल्य के रलो के चुगने मे थप दह दण्ड) योग्य है ॥३२३|| बड़े पशुश्रो और शस्त्र तथा औषधि के चुराने में काल और कार्य को देख कर राजा दण्ड देवे ॥३२४।। गोप बामणसंस्थासु रिकायाश्च भेदने । पशूनां हरणे चैव सद्यः कायोर्चपादिकः ॥३२५॥