पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४६५

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मनुस्मृति भापानुवार सूत्रकासिकिरवानां गोमयस्य गुडस्य च । दधनः क्षीरस्य तक्रस्य पानीयस्य तणस्य चा।३२६।। ब्राह्मण की गोवा के हरण और नाक काटने और पशुओ के हरण मे शीघ अर्घपाद के छेदने का दण्ड करे ।।३२५।। सूत कपास मदिरा की गाद, गोवर, गुड़, दही, दूध, मटा, जल तण ||३२ वेणुबैढलभाण्डाना लवणानां तथैव च ।। मएमयानां च हरणे मदामस्मन एव च ॥३२७॥ मत्स्यानां पक्षिणांचैव तैलस्य च घृतस्य च । मांसस्य मधुनश्चैत्र गृचान्यत्पशुसं मवम् ॥३२८।। घाँसकी नली और वरतनों, नमक, मट्टी के बरतनां की चोरी और मट्टी, राख ।।३२७॥ मछली, पक्षी तेल घृत मांस मधु और जो कुछ पशु से उत्पन्न होता है (चाम सीग आदि) ॥३२८|| अन्येषां मादीनामाधानामोदनस्य च | पकानानां च सर्वेषां तन्मूल्याद् द्विगुणोदमः॥३२६॥ पुष्पेषु हरिते धान्ये गुल्मवल्ली नगेषु च । अंन्येश्व परिपतेषु दरडः स्यात्पञ्चकृष्णला३३०॥ और भी इसी प्रकार की खाने की चीजो. चावलों के भात और सम्पूर्ण पक्यानो की भी चारी मे इनके मूल्य से दूना दस्त शेना चाहिये ।।३२९।। पुप्पो और हरे धान्य तथा गुल्म वल्ली वृक्षों और अन्य जिनके तुपादि वर करके श्रमनियां नहीं किये गये (उनकी चोरी करने वालेको) पाच 'कृष्णल" दण्ड हो।३३० परिपूतेषु धान्येषु धान्येषु शाकमूलफलेषु च। . .