पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४७४

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अष्टमाऽध्याय ४७१ ब्राह्मणादि उत्तम के साथ मङ्गम करने वाली कन्या को थोडा भी दण्ड न देवे, और हीन जाति से सम्बन्ध करने वाली का रक्षा से घर में रखने ||३६५|| उत्कृष्ट जाति वाली कन्या के माय सनम करने वाला हीन जाति पुरुप वध के योग्य है । और ममान जाति में हो ता सेवन करने वाला यदि उस कन्याका पिता स्वीकार करे तो शुल्क (मूल्य) दे । यह व्यभिचार प्रवर्तक है। यदि विवाहविषयक मानाजाने तो दस्डकी आशङ्का भी व्यर्थ है ।३६६ अभिपह्य तु यः कन्यां कुर्यादण मानव | वस्या का अंगुन्यौ दण्डंचाहतिषट्शनम् ॥३६७ सकामां दुपयंस्तुल्या नांगुलिच्छेदमाप्नुयात् । द्विशतं तु दमं दाप्यः प्रसङ्गविनिवृत्तये ॥३६८|| जो मनुष्य बलात्कार से कन्या का घमण्ड से बिगाड़े, उस की दो अंगुली शीघ्र काट ली जाब और छ सौ पण दण्ड योग्य है ॥३६॥ परन्तु कन्या की इच्छा के साथ विगाडने वाले सजातीय की अंगुलियों का छदन न हो, किन्तु प्रसङ्ग की निगृत्ति के लिये दो सौ पण दण्ड दिलाना चाहिये ।।३६८।। कन्यत्र कन्यां या कुर्यात्तस्याः ग्याद् द्विशतोदमः । शुल्कं च द्विगुणं दद्याच्छिमाश्याप्नुयादश ३६६॥ यात कन्यां प्रकुर्यात्स्त्री सा सद्योमौण्डयमर्हति । अंगुल्योरेव पाछेदं खरणोद्वहनं तथा ॥३७०॥ और कोई कन्या ही कन्या को (अंगुलियों मे ) विगाड़े तो उस को दो मी पण दण्ड होना चाहिये और कन्या के पिता को (जितना दहेज देना पड़ता, अब छतयोनिन की शङ्का से कहा- म