पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४७५

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१७२ नु मुनि भाषानु-द चित काई न विवाहे. इस की कनौड में देने के लिये) द्विगुण धन दण्डरूप शुल्क देवे और दश वेत सारे ॥३६९॥ और जो स्त्री कन्या को (बाली) से विगाड़े, यह उसी समय शिर मुण्डाने [न्य है, वा उगलियो के कटवाने का दण्ड पावे और गधेपर चढ़ा कर घुमानी योग्य है ।।३७०॥ मार जैवयेद्या तु स्त्री ज्ञातिगुणदर्पिता । तां ग्वभिःखादयेद्वाजा संस्थाने बहुसंस्थिते |३७१। पुमांसं दाइयेत्सापं शयने तनायसे | अभ्यादध्युश्च काठानि तत्र दयत पापकृत् ।३७२१ जो स्त्री प्रबल पिता, वान्धव धनादि के अभिमान से पति बोड़ कर दूसरे से सम्बन्ध करे उस को राजा बहुत आदमियो के बीच में कुलो से नुचवावे ॥३७१।। व्यभिचारी, पापी मनुष्य को जलते लोहे की चारपाई पर जलावे | सब लोग उस पर लकड़ियां डालें, उन मे पाप करने वाला जले ॥३७२।। संवत्सरामिशस्तस्य दुष्टस्य द्विगुणोदमः । वात्यया सह संवासे चण्डाल्या तावदेव तु ॥३७३। शुद्रो गुप्तमगुप्तं वा (जातं वर्णमापसन् । अगुणमङ्गसर्वस्वैर्गप्तं सत्रेण हीयते ॥३७॥ परस्त्री गमन करते २ दुष्ट पुरुप को एक वर्ष हो जावे तो उस पुरुप को पूर्वोक्त दण्डसे दूना दण्ड होना चाहिये और नात्या तथा चण्डाली के साथ रहने में भी चूना दण्ड होना चाहिये ।।३७३।। रक्षिता वा अरक्षिता द्विजाति वर्ण की स्त्री के साथ यति शूद गमन करे तो उस को अरतिता मे अछेदन तथा सर्वस्वहरण देण्ड हो और रक्षिता मे सत्र (शरीर तथा धनादि) से हीन कर दे ॥३७॥