पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४८०

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अपमाऽध्याय जो जैसा पूजा के योग्य है उस को वैसी पूजा करके ब्राह्मणों के साथ प्रथम उन को समभावे उस के अनन्तर स्वधर्म वता देवे ॥३९१|| निरन्तर अपने मकान में रहने वाले और कमी २ पाने जाने वाले इन दोनों योग्या को उत्सव में बीस ब्राह्मणों के भोजना- बसर में जो ब्राह्मण, मेजिन न करावे ते से १शेष्य मापक दण्ड देना योग्य है ॥३९॥ श्रोत्रिर: श्रोत्रियं साधु भूतिकरसेप्नभोजयन् । तदन्नं द्विगुण्डापो हिरण्यं चैध मापम् ।।३६३।। अन्धोजडः पीठसपी सप्तत्यास्थविरश्च यः। श्रोत्रियेप्पकूवरच नदाप्याः केचिरकारम् ।।३६४॥ यदि श्रोत्रिय विभव कार्य में एक साधु श्रोत्रियको भोजन न करावे तो उस अन्न से दूना अन्न और "हिरण्यमापक दण्ड दिलाना योग्य है ॥३५शा अन्ध बधिर, पंगु और सत्तर वर्ष का वृद्ध तथा श्रोत्रियों के उपकार करने वाला इनसे किसी को कर दिलाना चोग्य नहीं है ।।३९४॥ श्रोत्रियं व्याधितातौ च वालवृद्धापकिञ्चनम् । महाकुलीनमार्य च राजा संपूजयेत्सदा ॥३६॥ शाल्मलीफलकेश्लच्णेनेनिज्यानजका शनैः । न च वासांसि वासोभिर्निहीं मच वासयेत् ।।३६६॥ श्रोत्रिय रोगी दुःखी बालक वृद्ध दरिद्र और बड़े कुल बाल आर्य का राजा सदा सम्मान करे ॥३९५॥ सेमर की चिकनी पटिया पर धोनी धीरे धीरे कपडों को घौवे और दूसरे के कपडो से औरों के कपड़े न बदले जावे और न बहुत दिन पड़े रक्खे ॥३९६।।