पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४८१

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मनुस्मृति भाषानुवाद 4 तन्तुवायो दशपलं दद्यादेकपलाधिकम् । अतोऽन्यथा वर्तमानो दाप्योद्वादशकं दमम्॥३६७॥ शुल्कस्थानेषु कुशलाः सर्वपश्यविचक्षणाः । कुयु र यथापण्यं ततो विशं नृपो हरेत् ।।३६८ जुलाहा दश १० पल सूत लेके एकादश ११ पल .(मांडी से. चढ़ने के कारण) वस्त्र तौल देवे इससे विपरीत करे तो (राजा) धारह पण दण्ड दिलावे ॥३९॥ जो चुङ्गी आदि के विषय में कुशल और हर एक प्रकार के लेने देने में चतुर है। उन सौदागरों को जो लाम हो उसका वीसवां भाग राजाले ॥३९॥ राज्ञः प्रख्यातमाण्डानि प्रतिषिद्धानियानि च। तानि निर्हरतो लोमात्सर्वहारहरेन्नृपः ॥३६॥ शुल्कस्थानं परिहरन काले क्रयविक्रयी। । मिथ्यावादी च संस्थानेदापोऽष्टगुणमत्ययम् ।।४०० राजाके जो प्रसिद्ध निज विक्रेय द्रव्य और जो राजाने बेचनेसे निषेध किये हुवे द्रव्य है उन को लाभके कारण और जगह लेजा कर बेचने वाले का सर्वस्व राजा हरण करले ॥३९९।। चुगी की जगह से हट कर (चोरी से) और जगह माल ले जाने वाला वे समय घेचने खरीदने वाला और गिनती व तौल मे झूठ बोलने वाला उचित राज कर का ८ गुण वा जितने का झूठ बोला हो उसका आठ गुणा दण्ड दे॥१०॥ आगमं निर्गम स्थान तथा वृद्धिक्षयावुभौ । विचार्य सर्ग परयानां कारयेत्क्रयविक्रयौ ॥४०१॥ पञ्चरात्रे पञ्चरात्रे पचे पक्षेभ्यवा गते ।