पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४८२

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प्रटमाऽध्याय कुवत चैपां प्रत्यक्षम संस्थाप. THI४०२॥ आने और जाने का खर्च स्थान तथा वृद्धि और क्षय दोनों, इन को विचार कर सब वस्तुओं को खरीदने वचन का भाव करावे ||४|| पांच पांच दिन का पक्ष (१५ ३) दिन के भाव का राजा प्रत्यक्ष नियत करावे ॥४२॥ -तुलामानं प्रतीमानं सर्ग च स्यात्सुरक्षितम् । पटमु पसु च मासेषु पुनरेव परीचयेत् ॥४०॥ 'पणं यानं तरे दाप्यं पौरपोऽर्धपणं तरे। पादं पशुश्च वोविच पादाध रिक्तकः पुमान् ।।४०४ तुला की तोल और नापा को अच्छे प्रकार देखे और छ.छ. महीने में फिरसे दिखावे ॥४०३|| पुल पर गाड़ी का महमूल १ पण दे और एक आदमी के बोझ का आधा पण और गाय बैल आदि पशु तथा स्त्री चौथाई पण और खाली आदमी १ पण का ८ वां भागदे॥४४॥ भाण्डपूर्णानि यानानि तार्य दाप्यानिसारतः । रिक्तभाएडानियत्किञ्चित्पुमांसश्चापरिच्छदा. १४०५/ दीर्घावनि यथादेशं यथाकालं तरो भवेत् । नदीतीरेषु तद्विद्यात्समुद्रे नास्ति लक्षणम् ।।४०६ । पुल पर माल भरी गाड़ी का महसूल बोम के अनुसार दे और खालीसवारी और दरिद्र पुरुषोंसे महसूल कुछ थोड़ा लेलेवे ।।४०५ लभ्यी उतराई का महसूल देशकालानुसार हो । उसको नदी तीरमे हीजाने । समुद्रमे यह लक्षण नहीं है ॥४०६।। गभिणी तु द्विमासादिस्तथा प्रबजितो मुनिः।