पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४८३

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४८० मनुस्मृति भाषानुवाद ब्रामणालिङ्गिनश्चैव न दाप्यास्तारित तरे ।।४०७॥ यन्नावि किञ्चिदासानां विशीयतापराधतः । तदासरेव दातव्यं समागम्य स्वतो शतः ॥४oril दो महीने ऊपर की गर्भिणी, संन्यासी, धानप्रस्थ ब्रह्मचारी और ब्राह्मण खेवट की खेवाई न दें ॥४०ला नाव पर बैठने वालो की खेवने वालो के अपराध से जो कुछ हानि हो वह अपने भाग में से सब खेवने वालों को मिल कर देनी चाहिये ।।४२८॥ एप नौयायिनामुको व्यवहारस्य निर्णयः । दासापराधतस्ताये दैविके नारित निग्रहः ||४०६|| वाणिज्यं कारयेद्व श्यं कुपीदं कपिमेव च । पशूनां रक्षणं चैव दास्यं शूद्रं द्विजन्मनाम् ।।४६०।। मल्लाहो के अपराध से पानी में हानि हो तो वे देवें । यह नाव से उतरने वालो के व्यवहार का निर्णय कहा। परन्तु देवी तूफान में मल्लाहो को दण्ड नहीं है 11४०९|| वाणिज्य गिरवी बट्टा खेती और पशुत्रो की रक्षा वैश्यो से और शूद्र से द्विजो की सेवा (राजा) करावे ॥४१०॥ क्षत्रियं चैव वैश्य च ब्रामणोवृत्तिकर्षिनौ । विभृयादानशंस्थेन स्वानि कर्माणि कारयन्।।४११॥ दास्यतु कारयंलोभाद् ब्रामयः संस्कृतान्द्रिजान् । अनिच्छतः प्रामवत्याद्राज्ञादण्ड् ॥ शतानिपटा४१२। क्षत्रिय और वैश्य वृत्ति के अभाव से पीड़ित हो तो दया से अपने २ कर्मों को करता हुवा ब्राह्मण उनका पोपण करे ॥४१शा