पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४८८

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नवमाऽध्याय जनती है । इस कारण प्रजा की शुद्धि के लिये भी प्रयत्न मे स्त्रो की रक्षा करे ॥९॥ काई बलात्कार से स्त्रियों की रक्षा नहीं कर सकता किन्तु इन उपयों से उनकी रक्षा कर सकता है.-||१०|| अर्थव्य संग्रह चना व्यये चैत्र नियोजयेत् । शौवे धर्मेन्त्रपक्त्यांच पारिणाह्यस्य चेक्षणे ।।११।। अरदिना गृहे रुद्वा. पुरानकारिभिः । आत्मानमात्मना वास्तु रक्षेयुस्ताः सुरनि ||१२|| धन के संग्रह या शौच धर्म रसोई पकाने और घर को वस्तुओं के देखने में इम (स्त्री की) याजना करे ।।११|| प्रानकारी पुरुषो से घर के परदे मे रोकी भी स्त्रिये मुरचित है। किन्तु जो अपने आप ही रक्षा करती हैं वे सुरक्षिता है ॥१२॥ पानं दुर्जनममर्गः पत्या च विरा-उनम् । स्वप्नोऽन्योहवामश्च नारीणां दृषणानि पट् । ॥१३॥ 'नैना रूपं परीक्षन्त नासां वयमि मंस्थिति । सुस्पं का विरूपं या पुमानिध्येय मुञ्जते ॥१४॥" मगपान और दुर्जन ममर्ग तथा पति से अलग रहना और इधर उधर घूमना तथा समय सोना और दूसरे के घर मे रहना ये स्त्रियों के छ. दूपण हैं ॥१३॥"येन नो रूप का विचार करती हैन इनके श्रायु का ठिकाना है सुरुष अथवा कुरूप पुरुष मात्र हो उसे ही भागनी है ॥१४॥ "पोचल्याचलचित्ताच्च नन्नह्याच्च स्वभावतः । रक्षिता यत्नतोऽपोह भवेता विकुर्वते ।।१५।। एवंम्वभावं ज्ञात्वाऽऽसां प्रजापतिनिसर्गजम् । परमं यत्नमाति पुरुषो रक्षणं प्रति ॥१६॥