पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४८९

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४८६ मनुस्मृति भाषानुवाद "पुरुष पर चलने वाली होने और चित्त की चञ्चल तथा स्वभाव से ही स्नेह रहिता होने से यत्न पूर्वक रक्षित स्त्रिये भी पति मे विकार कर बैठती हैं ॥१५॥ ब्रह्मा के सृष्टिकाल से साथ रहने वाला इस प्रकार उनका स्वभाव जान कर पुरुष इन की रक्षा का परम यल करे ॥१६॥ "शय्यासनमलद्वार काम क्रोधमनार्जवम् । मोहमा कुचर्या च वीभ्यामनुरकल्पग्रस् ॥१७॥ नास्ति स्त्रीणां क्रियामन्त्रैरिति धर्म व्यवस्थिति। निरिन्द्रिया ह्यमन्त्राच स्त्रियो नृतमितिस्थिति ॥१८॥ "शय्या आसन अलङ्कार काम क्रोध अनार्जव, द्रोहमात्र और कुचर्या मनु ने स्त्रियों के लिये उत्पन्न किये हैं ॥१७॥ जात कर्मादि क्रिया स्त्रियों की मन्त्रों से नहीं हैं। इस प्रकार धर्मशास्त्र की मर्यादा है। स्त्रियां निरिन्दिया और अमन्ना हैं और इन की स्थिति असत्य है ॥१८॥ तथा च श्रुतयो व यो निगीतानिगमेष्वपि । खालक्षण्यपरीक्षार्थ' तासां शृणुत निष्कृती. ॥१९॥ यन्मे माता प्रललमे विचरन्त्यऽपतिव्रता । तन्मे रेतः पिता युवामित्यस्यैतनिदर्शनम् ॥२०॥ व्यभिचारशीला स्त्रियों के स्वभाव की परीक्षार्थ वेदों में बहुत श्रुतिय पठित हैं, उन व तियो मे जो व्यभिचार के प्रायश्चित्त भूत हैं, उन को सुनो ।।१९।। (कोई पुत्र माता का मानस व्यभिचार जान कर कहता है कि जो कि मेरी माता अपतिव्रता हुई पर पुरुष को चाने वाली थी, उस दुष्टता को मेरा पिता शुद्धवीर्य से शोधन करे यह उन श्रुतियो मे से नमूना दिखाया गश ॥२०॥" "ध्यायत्यनिष्टं यत्किञ्चित्पाणिग्राहस्य चेतसा।