पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४९०

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नवमाऽध्याय तस्येव व्यभिचारम्य निन्दवः सम्पगुच्यते ॥२१॥ यागुणनभा श्री मयुज्यंत यथाविधि । वादग्गुणा मा भवति समुदणेर निम्नगा RI" "भाके विपरीत जा सक स्त्री मरे पुपके साथ गमन चाहती है, उस के इस मानम व्यभिचार की या अच्छे प्रकार शोवनमंत्र कहा है ॥२१॥ जिन गुणों वाले पति के मायनो रीनि में विवाह करके रहे. वैसे ही गुण वाली यह (बी) की जाती है। जैस समुद्र के साथ नहीं" ॥२२॥ "प्रतमाला यमिहने संयुक्ताऽधमयानिजा। शारगी मन्दपालेन जगामाभ्याणीयताम ||२३॥ एताश्चान्यान लोकेऽस्मिन्नपष्टप्रमूतय । उन्कर्ष यापित प्राप्ताः स्वैम्बर्ट गुणं शुमै " ||२४॥ असमाला नाम की निकृष्योनिम्त्री बमिट से युक्त हो पूज्यता को माम हुई. मी ही शारदी मन्दराल में मुक्त होकर (पृज्यना को ग्राम ) इस लोक में थे और अन्य अधम योनियो में उपन हुत्रिये अपने अपने शुभ पतिगुणों से उच्चत्ता का प्राप्त हुई। (१५ वें से २४ तक ११ श्लोकों में पली मालक है जैसी कि चाणक्य प्रादि के समय स्त्रियों की अत्यन्त अविश्वासिता की दशा थी। १४ में स्त्रियों को युवा आदि अवस्था और सुरूप पुरुष की आयश्यकता का अभाव लिखा है, जो तीन काल में कभी नहीं हो सकता कि स्त्रिये युवा और सुरूपपुरुष की इच्छा न करें। केवल पुरुप मात्र जिसे देखें उसे ही भागने लगे। यदि कहीं अत्यन्त कामासक्ता स्त्री की यह दशा देखी भी जावे तो पुरुषों की इस से भी युरो अवस्थायें प्रायः होती हैं। इस लिये स्त्रियों