पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४९२

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नवमाऽध्याय उम असत्य कलित अति को मानसी व्यभिचार रूप पाप का प्रायश्चित्त बताया है । २२ से २४ तक में इतिहास से वसिष्ठ और मन्दपाल की स्त्री अक्षमाला और शारङ्गी नीच योनि के उदाहरणो से इस बात को पुष्ट किया है कि पुरुष चाहे जैमी नीच स्त्री को विपाह सकते हैं, यह उन पुरुषों के मन में पवित्र होजाती हैं। धन्य' पुरुष बड़े वतन रहे और पारस की पथरी हो गये ।। और पूर्व जो दिनों को मवर्णा स्त्री से ही विवाह करना कहा था, उम के विरोध का भी इस रचना करने वाले ने कुछ मन न किया, तथा मन्दपाल के वर्णन को जो मन जी से बहुत पीछे हुना है, मनुवाक्य (वा भृगुषाक्य ही सही यहि मनु और भृगु एक कालमे वर्तमान थे तो ) में 'जगाम इस पराभूतार्थ लिट् लकार से अत्यन्त प्राचीन वर्णन करने में भी यह असम्भव है। इन्यादि कारणों से हमारी सम्मति में यह रचना पश्चान् की है और १३ का २५ व से सम्बन्ध भी ठीक मिलता है ) ॥२४॥ एपोदिता लोकयात्रानित्यंस्त्रीपुन्सयो-शुभा । प्रत्येह च. सुखादन्जिा धर्माविरोधन ॥२५॥ प्रजनार्थ महाभागाः पूजाहाँ गृहदीप्तयः । स्त्रियः श्रियश्च गेहेषु नविशेषोऽस्ति कथन ॥२६॥ यह स्त्री पुरुष सम्बन्धी सना शुभ लोकाचार कहा। अब इस लोक तथा परलोक में शुम सुख के वर्धक सन्तानधों का सुना २५॥ ये स्त्रियां घड़ी भाग्यवती, सन्तान की हेतु सत्कार (पूजन ) योग्य पर की शामा हैं और घरों में स्त्री तथा लक्ष्मी- श्री में कुछ मेद नहीं है ( अर्थात् दानी समान हैं ) ॥२६॥ उत्पादनामपत्यस्य जातस्य परिपालनम् ।