पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४९९

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मनुस्मृति भापानुवाद अतः परं प्रवच्यामि योषितां धर्ममापदि ॥५६॥ यह (४९ से ५४ तक) व्यवस्था गाय, घोड़ा दासी. ऊंट, वकरी, भेड़, पक्षी और मेंस की सन्तति में जाननी चाहिये ॥५५॥ यह बीज और योनि के प्राधान्य और अप्राधान्य तुम लोगो से कहे अब स्त्रियों के आपत्काल का धर्म (अर्थात् सन्तान न होने में क्या होना चाहिये सो) कहता हूँ ॥५६॥ भ्रातुज्येष्ठस्य भार्या या गुरुपल्यनुजस्य सा । थवीयसस्तुयामाया स्नुषा ज्येष्ठस्य सा स्मृता ।।५७॥ ज्येष्ठो यवीयसा माया यवीयान् वाग्रजस्त्रियम् । पतितौ भवतो गत्वा नियुक्तावप्यनापदि ॥५८|| बड़े भाई की स्त्री छोटे भाई को गुरुपत्नी के समान है और छोटे की स्त्री बड़े को पुत्रवधू के समान कही है ॥५७|| बड़ा माई छोटे भाई की स्त्री के साथ या छोटा भाई बड़े भाई की स्त्रीके साथ दिना आपत्काल के (सन्तान रहते हुवे) नियोग विधिसे भी गमन करने से (दोनों ) पतित होते हैं (किन्तु) 1८11 देवराद्वा सपिण्डाद्वा स्त्रियासम्या नियुक्तया । प्रजेप्सिताधिगन्तव्या सन्तानस परिक्षये ॥५॥ विधवायां नियुक्तस्तु घृताक्तोवाग्यनोनिशि । एकमुत्पादयेत्पुत्रं न द्वितीयं कथञ्चन ॥६०॥ सन्तान न हो तो, पुल की इच्छा से भले प्रकार नियोग की हुई स्त्री को देवर या अन्य सपिण्ड से यथेष्ट सन्तान उत्पन्न कर लेनी चाहिये ।।५९॥ विधवा के साथ नियोग करने वाला शरीर में