पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५००

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। नवमाध्याय, ४९७ घृत लगा मौन होकर रात्रि में (भोग करे इस प्रकार ) एक पुत्र अपन करे दूसरा कभी नहीं ॥६॥ द्वितीयमेके प्रजनं मन्यन्तेस्त्रीप तद्विदः। अनिवृ'चं नियोगार्थ पश्यन्तोधर्मतस्तयोः ॥६॥ विधवायां नियोगार्थे नि तु यथाविधि । गुरुवर स्नुपावच वत्ते यातां परस्परम् ॥६२॥ दुसरे आचार्य जो नियोग से पुत्रोत्पादन की विधि को जानने वाले, उनोनों स्त्रीपुरुषांक नियोगकं तात्पर्यको (१ पुत्रस) सिद्ध न होता देखते हुवे स्त्रिया में दूसरा पुत्र उत्पन्न करना भी धर्म से मान हैं ॥६शा विधवा में नियोग के प्रयोजन (गर्भ धारण) को विधिसे निहो जाने पर वहे और छोटे भाईकी स्त्रियोंसे दोनो भाफ्स में गुरुपत्नी और पुत्रवधू के सा व्यवहार करें ॥६ नियुक्तौ यौविधि हित्वा वर्षे यातां तुकामत । वावुभौ पतितो स्यातां स्नुपागगुरुतल्पगौ ॥६३॥ नान्यस्मिन्विधवा नारी नियोक्तच्या द्विजातिभिः । अन्यस्मिन् हिनियु-नाना धर्महन्युन्सनातनम् ॥६४॥ जो छोटे और बड़े भाई अपनी भौजाइयों के साथ नियोग किये हुवे भी विधि को छोड़कर बाम वश भोग कर वे दोनों पतित गुरु की स्त्री और पुरम से गमन करने वाले हो ॥३॥ ब्राह्मण क्षत्रिय और वेदों का विमा यो का दूसरे (पा के मात्र नियोग न करना चाहिये । दृमरेवर्णके माथ नियोगकी हुई (त्रिये) सनातन धर्म का नाश करती है। "नासादिकेस मन्त्रेयु नियोग कीर्त्यत क्वचिन् । ६३