पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५०० मनुस्मृति मापानुवाद तामनेन विधानेन निजी विन्देत देवरः ॥६९|| यथाविध्यधिगम्यौनां शुक्लवस्त्रां शुचित्रताम् । मिया भनेताप्रसवात्सकृत्सकृटतावृतौ ||७० जिस कन्या (पतिसम्मोग रहिता) का सत्य वाग्दान (कन्या दान सङ्कल्प) करने के पश्चात् पति मर जाये, उस को इस विधान से निज देवर प्राप्त हो (कि-) ॥६५॥ (वह देवर) नियोग विधि से इस के पास जाकर खेत वस्त्र धारण किये हुई और काय, मन वाणी से पवित्र हुई के साथ सन्तानोत्पचि पर्यन्त गमाधानकाल में एक एक बार परस्पर गमन करे (गर्भाधान हो जाये तव मैथुन त्याग दे ) Hol न दत्वा कस्यचित्कन्यां पुनर्दद्याविचक्षणः । दत्त्वा पुनः प्रयच्छन् हि प्राप्नोतिपुरपानृतम् ।।७१|| विधिवत्प्रतिगृह्यापि त्यजेत्कन्यां विगहिताम् । व्याधितां विप्रदुष्टां वाचमनाचापपादिताम् ।७२। ज्ञानी पुरुष किसी को कन्यादान देकर फिर दूसरे को न देवे । क्यो कि एक को देकर दूसरे को देने वाला मनुष्य भी चारी के दोष को प्राप्त होता है |७१|| विधिपूर्वक ग्रहण की हुई भी निन्दित कन्या का त्याग करदे जो कि दुष्टा वा रोगणी और छल से दी गई हो ॥७२॥ यस्तु देयवती कन्यामनाख्यायोपपादयेत् । तस्य तद्विवयं कुर्यात् कन्यादातुदुरात्मनः ॥७३॥ विधाय वृत्ति भार्यायाः प्रचसेत् कार्यवानरः ।