पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५०४

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नवमाऽध्याय ५०१ भवृचिकर्षिताहि स्त्री प्रदुप्यस्थितिमत्यपि ॥४॥ जो दोप वाली कन्या का विना क्षेप प्रकट किये विवाह करदे इम कन्या के देने वाले दुष्ट के कन्यादान का निष्फल कर देखें। (अर्थान् उस का त्याग कर दे) १७ कार्य वाला पुरुष स्त्रीक भोजन कपड़े आदि का विधान कर के पपदेश जावं. क्यों कि भोजन आदि से पीड़ित शीलवती भी स्त्री बिगड़ सकती हैं | विधाय प्रोपिते वृत्ति जीवेनियममास्थिता । प्रोषिते स्वविधायेव जीवेच्छिल्पैरंगहि तः ७५ प्रोपितो धर्मकार्यार्थ प्रतीच्यो ऽप्टौनस समाः। विद्यार्थशड्यशार्थ वा कामार्थत्रीस्तुवत्सरान् ॥७६॥ भाजन पाच्छादनादि देकर पति के देशान्तर जाने पर स्त्री शरीर के शृङ्गार त्यागाह निरम से निर्वाह करे और विना प्रबन्ध किये जाने तो अनिन्दित शिल्पो में (निर्वाह करे) ॥७॥ धर्म कार्य के लिये परदेश गये नर की स्त्री आठ वर्ष पर्यन्त यश और विद्या के लिये गया हो तो छः वर्प और काम को गया हो तो ३वर्ष प्रतीक्षा करे ||७६॥ संवत्सरं प्रतीत द्विपन्ती योपितं पतिः । ऊध्र्य सम्बत्सरावेनां दायं हवा न संबसेत् ।७७/ अतिक्रामेबमर्श या मर्च रोगामिव वा ।। सात्रीन्मासान्परित्याज्या विभूत परिच्छदा ७८ द्वेप करने वाली स्त्री को एक वर्ष पर्यन्त पति प्रतीक्षा करे । फिर उस के अलङ्कारादि सब छीन ले और उस के साथ न रहे,