पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५०५

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५०२ मनुस्मृति भाषानुवाद (फेवल अन्न वस्त्र मात्र दे) ||७|| जो स्त्री प्रभावी वा मदमत्त वा उन्मादी वा रोगी पति की आमा मन करे वह वस्त्र भूपण उतार कर तीन महीने तक त्यागने योग्य है ||८|| उन्म पतितंक्लीवमवीज पापरोगिणम् । न त्यागास्ति द्विषन्त्याच नच दायापवर्चनम् 1981 मद्यना साधुवृत्ता च प्रतिकूला च या भवेत् । व्याधितावाधिवेत्तव्या हिंस्रार्थनी च सर्वदा 1201 पागल और पतित तथा नपुन्सक और बीज रहित और पाप रोगी. इन से द्वध करने वाली का त्याग नहीं है और न उस का धन छीनना उचित है ॥७९॥ मद्य पौन वाली और बुरे चलन वाली तथा पति के विरुद्ध चलने वाली और सदा बीमार और मारने वाली और सदा धन का नाश करने वाली स्त्री हो तो उस के रहते हुवे भी दूसरी स्त्री करनी उचित है ॥८॥ वन्ध्याश्टमेधिवेधाव्दे दशमे तु मृतप्रजा । एकादशे स्त्रीजननी सद्यस्त्वप्रियवादिनी ॥८१|| था रोगिणीस्यात्त हिता संपन्नाचैव शीलतः । सानुज्ञाप्याधिवेत्तव्या नावमान्या च कर्हि चित् ।८२॥ आठ वर्ष तक कोई सन्तान न हो तो दूसरी स्त्री करले और सन्तान होकर मरते ही रहे तो दशवर्ष में और लड़की ही होती हो तो ग्यारह वर्ष के पश्चात् तथा अप्रिय बोलने वाली हो तो उसी समय (दूसरी कर ले) ॥८१|| जो सना बीमार रहे परन्तु पति के अनुफूल और शीलवती हो तो उस से आज्ञा लेकर दूसरी स्त्री करले और पहली का अपमान करना उचित नहीं है ||२