पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५०६

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नवमाऽध्याय अधित्रिन्नातु या नारीनिर्गच्छेदूषिता गृहात् । सासद्य सबिरोद्धव्या त्यांच्यावाकुलसन्निधौ ॥८३:। प्रतिषिद्धापि चंश तु मानन्धुदयेष्वपि । प्रबासमा गच्छेहा सादण्डयाकृष्णलानिया ८४।। दूसरी स्त्री थाने से रूठी हुई पूर्व स्त्री घर से निकल जाने तो वह उसी समय रोक कर रखनी चाहिये मा चाप के घर पहुंचा देवे ||८शा जो स्त्री विवादि उत्सवों में निषेध करने पर भीमद्य पीने या नाच तमाशे में जाने ता पूर्वोक्त छ ६ "कृष्णल' राज दण्ड योग्य है | "यदि स्वाश्चापराश्चैव विन्देरम्पोपितो द्विजा.। तासां वर्णक्रमेण स्याज्यैष्ठवं पूजा च वेश्म च ||५|| मतु शरीरशुभ या वनकार्य च नैत्विकम् । स्खा व कुर्यात्सर्वेषां नास्त्रजाति. कथंचन ||६|| "यदि दिनाति (ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य) अपनी जाति वाली वा दूसरी जाति वालियों से विवाह करें तो उनकी वडाई और मान यथा घर वर्णकमसे हो (९ पुस्तकोंमे "वैश्म.' पाठ है)1८५ पति झं शरीर की सेवा और नैयिक धर्मकार्य को सब की बनातीय स्त्रियां ही करें अन्य जाति की कभी न (करे) |८६|| 'यस्तु तत्कारयेन्माहासत्रात्या स्थितयारन्यया । यथा ब्राह्मणचाण्डाल. पूर्वदृष्टस्तथैव स || "जो स्वजातीय के रहते हुवे दूसरी से पूर्वोक्त कर्म मोह वश कराने वह जैसा ब्राह्मण चण्डाल पुरातन मुनियों ने कहा है जैसा ही है। (416120 वें श्लोक इम लिये माननीय नहीं कि