पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/५०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मनुस्मृति मापानुवाद तां साध्वी बिभ्यानित्यं देवानां प्रियमाचरन् ।६।। प्रजनाथ स्त्रियः सृष्टाः संतानार्थं च मानवाः । तस्मात्साधारणो धर्म श्रुतौपरल्यासहादितः ।।६। ('भगो अर्यमा सविता पुरधिर्मात्यादुर्गाहपत्याय देवाः " इत्यादि मन्त्रानुसार) देवतोंकी दी हुई भार्या को पति पाता है कुछ अपनी इच्छा से ही नहीं, इसलिये देवतो का प्रिय आचरणकरता हुवा उस सती का नित्य पालन करे ।।९५|| गर्भ धारण करने के लिये स्त्रियों को (ईश्वरने) उत्पन्न किया और वीर्य मन्तान के लिये पुरुप उत्पन्न किये हैं। इसीसे स्त्री के साथ पुरुष का वेद मे समान धर्म कहा है ॥९॥ 'कन्यायां दत्तशुल्कायां नियेत यदि शुल्कद । देवराय प्रदातव्या यदि कन्याऽतुमन्यते ।।२०।" आददीत न शूद्रोऽपि शुल्क दुहितरं ददन् । शुल्कं हि गृह्णन्कुरुते छन्नं दुहितृ विक्रयम् ।।८। कन्या का शुल्क देने पर यदि शुल्क देने वाला भर जावे तो ठेवर को कन्या देदेनी चाहिये यदि कन्या स्वीकार करे तो (यह अगले ही ९८ के विरुद्ध है ) ॥९७॥ शुद्रभी (द्विजों की तो कथा ही क्याहै) लड़की देताहुआ शुल्क प्रहण न करे । शुल्क प्रहणकरने वाला छिपा हुवा कन्या का विक्रय करता है ।।९८॥ एतत्तु न परे चक्र नापरे जातु साधवः । यदन्यस्य प्रतिज्ञाय पुनरऽन्यस्य दीयते ||६|| नानुशुश्रुम जात्वेतत्पूर्वेष्वपि हि जन्मसु । शुल्कसंज्ञेन मूल्येन छन्नं दुहितृविक्रयम् ॥१०॥ ॥